ka·ṭa·pa·yā·di system of numerical notation is an ancient Indian alphasyllabic numeral system to depict letters to numerals for easy remembrance of numbers as words or verses.
जैसे समझिए कि मेरा ATM PIN 0278 है- पर कभी कभी संख्या को याद रखते हुए ATM में जाकर हम Confuse हो जातें हैं कि 0728 था कि 0278 ? यह भी अक्सर बहुत लोगों के साथ होता है, ये इन से बचने के उपाय हैं जैसे ATM PIN के लिए कोई भी चार अक्षर वाले संस्कृत शब्द को उस के कटपयादि मे परिवर्तनहम में से बहुत से लोग अपना Password, या ATM PIN भूल जाते हैं इस कारण हम उसे कहीं पर लिख कर रखते हैं पर अगर वो कागज का टुकड़ा किसी के हाथ लग जाए या खो जाए तो परेशानी हो जाती पर अपने Password या Pin No. को हम लोग “कटपयादि संख्या” से आसानी से याद रख सकते है|
“कटपयादि”( क ट प य आदि) संख्याओं को शब्द या श्लोक के रूप में आसानी से याद रखने की प्राचीन भारतीय पद्धति है चूँकि भारत में वैज्ञानिक/तकनीकी/खगोलीय ग्रंथ पद्य रूप में लिखे जाते थे, इसलिये संख्याओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्त करने हेतु भारतीय चिन्तकों ने इसका समाधान 'कटपयादि' के रूप में निकाला। कटपयादि प्रणाली के उपयोग का सबसे पुराना उपलब्ध प्रमाण, 869 AD में “शंकरनारायण” द्वारा लिखित “लघुभास्कर्य” विवरण में मिलता है तथा “शंकरवर्मन” द्वारा रचित “सद्रत्नमाला” का निम्नलिखित श्लोक इस पद्धति को स्पष्ट करता है - इसका शास्त्रीय प्रमाण -
नज्ञावचश्च शून्यानि संख्या: कटपयादय:। मिश्रे तूपान्त्यहल् संख्या न च चिन्त्यो हलस्वर: ॥
[अर्थ: न, ञ तथा अ शून्य को निरूपित करते हैं। (स्वरों का मान शून्य है) शेष नौ अंक क, ट, प और य से आरम्भ होने वाले व्यंजन वर्णों द्वारा निरूपित होते हैं।] किसी संयुक्त व्यंजन में केवल बाद वाला व्यंजन ही लिया जायेगा। बिना स्वर का व्यंजन छोड़ दिया जायेगा।] अब चर्चा करते हैं कि आधुनिक काल में इस की उपयोगिता क्या है और कैसे की जाए ?
कटपयादि – अक्षरों के द्वारा संख्या को बताकर संक्षेपीकरण करने का एक शास्त्रोक्त विधि है, हर संख्या का प्रतिनिधित्व कुछ अक्षर करते हैं जैसे
1 – क,ट,प,य
2 – ख,ठ,फ,र
3 – ग,ड,ब,ल
4 – घ,ढ,भ,व
5 – ङ,ण,म,श
6 – च,त,ष
7 – छ,थ,स
8 – ज,द,ह
9 – झ,ध
0-ञ,न,अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ॠ,लृ,ए,ऐ, ओ,औ
Please note all Indian Languages (except scripts like Urdu and English) follow the same rules and sequence.
हमारे आचार्यों ने संस्कृत के अर्थवत् वाक्यों में इन का प्रयोग किया, जैसे गौः = 3, श्रीः = 2 इत्यादि । इस के लिए बीच में विद्यमान मात्रा को छोड देते हैं । स्वर अक्षर ( vowel) यदि शब्द के आदि (starting) मे हो तो ग्राह्य ( acceptable) है, अन्यथा अग्राह्य (unacceptable) होता ।
जैसे समझिए कि मेरा ATM PIN 0278 है- पर कभी कभी संख्या को याद रखते हुए ATM में जाकर हम Confuse हो जातें हैं कि 0728 था कि 0278 ? यह भी अक्सर बहुत लोगों के साथ होता है, ये इन से बचने के उपाय हैं जैसे ATM PIN के लिए कोई भी चार अक्षर वाले संस्कृत शब्द को उस के कटपयादि मे परिवर्तन करें ( उस शब्द को सिर्फ अपने ही मन मे रखें, किसी को न बताएं ) उदाहरण के लिए –
राम = 52 महेन्द्र = 285 कौटिल्य = 111
इभस्तुत्यः = 0461
गणपतिः = 3516
गजेशानः = 3850
नरसिंहः = 0278
जनार्दनः = 8080
सुध्युपास्यः = 7111
शकुन्तला = 5163
सीतारामः = 7625
इत्यादि ( अपने से किसी भी शब्द को चुन लें )ऐसे किसी भी शब्द को याद रखें और तत्काल “कटपयादि संख्या” मे परिवर्तन कर के अपना ATM PIN आदि में प्रयोग करें ।
Karnataka music is all mathematics and science using कटपयादि संख्या
Let us take it to next level
गोपीभाग्यमधुव्रात-श्रुग्ङिशोदधिसन्धिग। खलजीवितखाताव गलहालारसंधर ॥
अगर इसका सीधा ट्रांसलेशन कर दें. तो भगवान कृष्ण की तारीफ मिलेगी –
हे कृष्ण, गोपियों के भाग्य, राक्षस मधु का वध करने वाले , पशुओं के रक्षक, जिसने समुद्र की गहराई नापी है, दुर्जनों के नाशक, जिसके कंधे पर हल है और जो अमृत धारण करते हैं, रक्षा करो!
इसमें गणित कहां है? गणित हमें कटपयादि से मालूम चलेगी. ऊपर वाली टेबल से हिसाब मिलाइए. इस बार वैल्यू देना आगे से ही चालू करना (गोपीभाग्य वाले शब्द से). ग, प, भ… ऐसे. ये भगवान् कृष्ण वाला श्लोक भी पाई (π) की ही वैल्यू देगा. लेकिन ये वाली पाई की वैल्यू दशमलव के 31 स्थानों तक एक्यूरेट है – 3.1415926535897932384626433832792
Is it by chance? No. Lets see another example
14वी शताब्दी में माधवाचार्य नाम के एक संत हुए. इनका नाम अक्सर भक्ति आन्दोलन और द्वैत दर्शन से जोड़ कर देखा जाता है. लेकिन इन्होंने एक और जोरदार काम किया था. माधवाचार्य ने इसी कटपयादि सिस्टम में एक टेबल बनाई थी. उन्होंने 90 डिग्री के एंगल के 24 टुकड़े किये. हर टुकड़े के साइन की वैल्यू वहीं से आती है. उस टेबल का नाम पड़ा – माधवाचार्य की ज्या सारणी (Sine table of Madhavacharya). त्रिकोणमिति (Trigonometry) याद है, जिसमें साइन थीटा (Sin θ), कॉस थीटा (Cos θ) जैसी चीज़ें होती हैं. साइन को संस्कृत में ज्या बोलते हैं. सिंपल बोलें तो माधवाचार्य ने साइन टेबल बनाई. ये श्लोक पढ़िए – श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां हिमाद्रिर्वेदभावनः। तपनो भानुसूक्तज्ञो मध्यमं विद्धि दोहनं।। धिगाज्यो नाशनं कष्टं छत्रभोगाशयाम्बिका। म्रिगाहारो नरेशोऽयं वीरोरनजयोत्सुकः।। मूलं विशुद्धं नालस्य गानेषु विरला नराः। अशुद्धिगुप्ताचोरश्रीः शंकुकर्णो नगेश्वरः।। तनुजो गर्भजो मित्रं श्रीमानत्र सुखी सखे!। शशी रात्रौ हिमाहारो वेगल्पः पथि सिन्धुरः।। छायालयो गजो नीलो निर्मलो नास्ति सत्कुले। रात्रौ दर्पणमभ्रांगं नागस्तुंगनखो बली।। धीरो युवा कथालोलः पूज्यो नारीजरैर्भगः। कन्यागारे नागवल्ली देवो विश्वस्थली भृगुः।। तत्परादिकलान्तास्तु महाज्या माधवोदिताः। स्वस्वपूर्वविशुद्धे तु शिष्टास्तत्खण्डमौर्विकाः।।
ये कैसी टेबल हुई? समझाते हैं. ये ऊपर टोटल 14 लाइन हैं. इनमें से शुरू की 12 लाइन मेन हैं. आखिरी की दो लाइन काम की नहीं हैं. हर एक लाइन के दो भाग हैं. जैसे-पहली लाइन टूट कर ‘श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां’ और ‘हिमाद्रिर्वेदभावनः’ हो जाएगी. इस तरह से कुल 24 टुकड़े हो जाएंगे जो एक-एक कर साइन की वैल्यू देते रहेंगे. अब इन हाफ-लाइन्स को कटपयादि सिस्टम से डिकोड करके मतलब खोल के देखें. तो हर आधी लाइन से आठ अंकों का एक नंबर निकलेगा. उदाहरण के लिए पहली हाफ-लाइन ले लेते हैं – ‘श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां’ कटपयादि टेबल दोबारा देखनी पड़ेगी: इससे कटपयादि वाला नंबर आएगा – 22 05 4220. इस नंबर को रिवर्स करके एक स्पेशल फॉर्मूले में डालें तो 0.06540314 वैल्यू मिलेगी. ये पहले टुकड़े यानी (90/24) डिग्री के एंगल की वैल्यू है. 90 को 24 से भाग दिया जाए तो 3.75 मिलता है. इसलिए पहले टुकड़े से साइन 3.75 डिग्री की वैल्यू मिलती है. इस तरह से इस 14 लाइन के श्लोक (जिसमें 12 ही काम की हैं) की हर एक हाफ-लाइन को डीकोड करें तो 3.75 डिग्री से 90 डिग्री तक साइन के 24 कोणों की वैल्यू मिल जाएगी. ऐसे करके ये श्लोक साइन की टेबल बन जाता है. ये देखो
एक प्रॉब्लम तो सॉल्व हुई. जिस साइन की टेबल को रटने में पसीना आ जाता था. उसका फर्रा माधवाचार्य ने बना के दे दिया. अब केवल एक श्लोक याद करना है. और पेपर पर टेबल छप जाएगी.
करणपद्धति
चापाच्च तत्तत् फलतोऽपि तद्वत् चापाहताद्द्वयादिहतत् त्रिमौर्व्यालब्धानि युग्मानि फलान्यधोधः चापादयुग्मानि च विस्तरार्धात्विन्यस्य चोपर्युपरि त्यजेत् तत् शेषौ भूजाकोटिगुणौ भवेतां
इसका गणितीय अनुवाद यह है- sin x = x - x3 / 3! + x5 / 5! - ...cos x = 1 - x2 / 2! + x4 / 4! - ...
और अन्ततः, निम्नलिखित श्लोक इन्वर्स टैन्जेन्ट का अननत श्रेणी प्रसार प्रदान करता है-
व्यासार्धेन हतादभिष्टगुणतः कोट्याप्तमआद्यं फलंज्यावर्गेण विनिघ्नमादिमफलं तत्तत्फलं चाहरेत् ।कृत्या कोटिगुणास्य तत्र तु फलेष्वेकत्रिपञ्चादिभिर्-भक्तेष्वोजयुतैस्तजेत् समजुतिं जीवाधनुशिशषते ॥
इसका गणितीय रूप से लेखन इस प्रकार कर सकते हैं-
tan−1 x = x - x3 / 3 + x5 / 5 - ...
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source 1- Wikipedia and VedicAshram (Facebook)
Source2: https://www.thelallantop.com/bherant/katapayadi-system-which-converts-sanskrit-shlokas-into-mathematical-formula-is-one-of-many-ancient-indias-achievement/
Source 3: https://twitter.com/V_Shuddhi/status/1489422557409603585?s=20&t=D3Hy2phPu1Xs5YvKUVb4ZA
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